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सोमवार, 29 अगस्त 2016

शाम हो गई एक और दिन रात मे ढल कर अलविदा कहने को है मेरी तुम्हारी बात आज फिर अधूरी रह गई आज फिर आँखों का साथ होंठों ने नहीं दिया आज फिर रात बहुत लम्बी होगी कल के इन्तज़ार में बीतेगा एक एक लम्हा एक एक बरस की तरह आज फिर ख़ाब तरसेंगे ताबीर के लिए क्यों कि रात कटेगी आँखो में किसी को अपने पास होने की ख्वाहिश में जबकि दिल को मालुम है यह ख्वाहिश पूरी नहीं होगी हर दिन की तरह और, हर दिन की तरह यह दिन भी बीत ही जाएगा कल फिर से जिएंगे हम एक नया दिन एक दूसरे के साथ एक दूसरे की याद में।।🌹🌹

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