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रविवार, 12 सितंबर 2010

लघु कथा

नशा
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स्टेशन पर भीड़ थी ! लोग बहुत बेसब्री से ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे ! ट्रेन के लेट होने से खोमचे वालों की खूब बिक्री हो रही थी ! अचानक एक धम्म की आवाज़ हुई ! सबने चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा ! एक नाटे कद का अधेड़ उम्र का व्यक्ति प्लेटफॉर्म पर गिरा पड़ा था ! देखते ही देखते उस बेहोश पड़े आदमी के चारों तरफ भीड़ जुट गई ! एक चिल्लाया, 'अरे, दूर हटो,हवा आने दो!'..दूसरी आवाज़ आई, 'अरे, पानी लाओ, पानी!' पास ही बेंच पर बैठी एक युवती ने अपने पास से पानी की एक बोतल तुरंत निकल कर कर दी !ऐसा कर के उसने यह जता दिया कि उस आदमी के चारों तरफ इकठ्ठा हुई भीड़ की तरह उसे भी पूरी हमदर्दी है, चाहे वह भीड़ में शामिल न हो कर बेंच पर बैठी है !
एक आदमी उस बुज़ुर्ग के सीने पर हथेलियों से पम्प करने लगा! उसे लगा कि कहीं यह दिल का मामला न हो! एक व्यक्ति तत्परता दिखता हुआ मुंह पर छींटें मारने लगा! ...एक ही पल में लगा कि इंसानियत अभी मरी नहीं है! जिंदगी कि भागदौड ने बेशक आदमी को बाहर से कठोर कर दिया है लेकिन उसके दिल में प्यार और हमदर्दी का सोता अभी सूखा नहीं है !
इतने में वो बाहोश पड़ा आदमी हिला व उठने को तत्पर हुआ !लोगों ने राहत की सांस ली ! फ़ौरन बेंच खाली करवाई गई, ताकि वो बुज़ुर्ग उस पर बैठ सके!... अब तक वो व्यक्ति खड़ा हो चुका था! वह हाथ जोड़ कर लोगों का शुक्रिया करने लगा ! उसकी भाव भंगिमा देख कर लोगों ने ठहाका लगाया , 'अरे भाई , ये तो पिए हुए है ! हम तो कुछ और ही समझे थे!...वो व्यक्ति नशे में चूर लहराता हुआ अस्फुट से स्वर में धन्यवाद करता हुआ आगे बढ़ने लगा !
अब तक जिसके लिए भीड़ में सहानुभूति थी , नशे ने उसे एक ही पल में मजाक का विषय बना दिया था .....!
द्वारा -नमिता राकेश
namita.rakesh@gmail.com

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

लघु कथा

""""" वी आर इंडियंस """""

बहुत ज़ोर शोर से विदेश जाने की तैयारी हो रही थी ! नए नए "सूट" सिलवाये जा रहे थे ! "हेयर कट" भी बदल गया था ! आखिर होता भी क्यूँ न यह सब ! विदेश जाने के लिए बड़े अफसरों की कितनी खुशामद करनी पड़ी थी , कितने कितने दिन और कई कई घंटे उनके कार्यालयों के चक्कर काटने पड़े थे , कितने घंटो की "वेटिंग" के बाद जाकर कहीं अफसर से मिलने का सौभाग्य मिला था ! अरे, यही अफसर तो थे जो उन्हें विदेश जाने के लिए हरी झंडी दिखाने वाले थे ! उन्हें भरोसा दिलाने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ा था .......
विशुद्ध भारतीय होने का प्रमाण देना पड़ा था - अपनी बोली से , धोतीं से, और पोटली से ! हिंदी का समर्थक होने का प्रमाण देने के लिए और भी ना जाने क्या क्या करना पड़ा था ! तब कहीं जाकर विदेश में होने वाले विश्व हिंदी सम्मलेन में जाने वालों की "लिस्ट " में उनका नाम दर्ज हुआ था !
"लिस्ट" में नाम सम्मलित होते ही उनकी अपनी "लिस्ट" शुरू हो गई थी - कहाँ कहाँ घूमेंगे , क्या क्या "इम्पोर्टेड" सामान लायेंगे ........ इत्यादि ! और तो और , एक अंग्रेजी "ट्यूटर" भी रख लिया था ताकि विदेश जाकर अंग्रेजी का रौब मार सके !
ये सब देखर कर उनके मित्र से रहा ना गया ! उन्होंने पूछ ही लिया , "भाई ,हिंदी सम्मलेन में जा रहे हो और अंग्रेजी ट्यूटर ? वो खिसयानी हँसी हँसते हुए बोले " अरे हिंदी तो हिंदी सम्मलेन में ही बोलेंगे ना ? बाहर तो अंग्रेजी ही .........."

द्वारा - नमिता राकेश

रविवार, 5 सितंबर 2010

हिंदी के बहाने से
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सितम्बर का महीना शुरू हो चुका था और हिंदी पखवाड़े का भी ! अक्सर हिंदी पखवाड़े और श्राद्ध की तिथियाँ आस पास ही पड़ती है और हम अपने पितरो को पूजने के साथ साथ हिंदी को भी पूज लेते है ! यूँ भी कह सकते है कि दोनों का श्राद्ध एक साथ कर लेते है!
हाँ , तो बात हिंदी पखवाड़े मौसम की हो रही थी ! जगह-जगह सम्मान - सम्मारोह, भाषण और कवी सम्मेलनों का आयोगन किया जा रहा था ! ऐसे ही एक बड़े समारोह में बड़े बड़े हिंदी के समर्थकों से मंच सुशोभित था ! एक एक करके विभूतियाँ हिंदी क़ी आन - बान और शान में कसीदे गढ़ रही थी , साथ ही अपने भी कि उन्होंने भारत और विदेशों में हिंदी के कितने परचम लहराए ........ वो दिन दूर नहीं जब हिंदी विश्व क़ी भाषा बनेगी ! तभी मिस सेलीना के नाम क़ी उद्घोषणा हुई !
मिस सेलीना आयीं और उन्होने अत्यंत भाव-विभोर ढंग से एकाग्रचित होकर , ऑंखें मूँद कर गायित्री मंत्र का पाठ हिंदी में स-स्वर पढ़ा ! पूरा हाल तालियों से गूंज उठा !
संचालक ने जन समूह को बताया कि मिस सेलिना विदेशी महिला होने के बावजूद हिंदी के प्रचार प्रसार में लगी हुई हैं ! उनकी सेवाओं को देखते हुए आज इस मंच से उन्हें सम्मानित किया जाता है !
मंच पर विराजमानt उन हिंदी समर्थक विभूतियों ने एक एक करके मिस सेलिना को प्रतीक-चिन्ह , शाल और पुष्प गुच्छ भेट किये और हर एक के मुह से निकला - "वेल डन" , "कीप इट अप " , "यू आर ग्रेट मैडम" ---- और हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित होती वो मिस सेलीना गद गद होकर बोलीं - " थैंक्यू सर , आई ऍम ओब्लाइज्द"
द्वारा- नमिता राकेश

बुधवार, 4 अगस्त 2010

ग़ज़ल
जीने के लिए बस यही वरदान चाहिए
दिल में खुलूस होंठों पे मुस्कान चाहिए

इस मुल्क को ना हाकिम ओ सुलतान चाहिए
गाँधी सुभाष जैसा निगेहबान चाहिए

गोरो के कहर मुगलों के जुल्मो सितम के बाद
अपनों की साजिशों का समाधान चाहिए

छोटी ही सही या खुदा गुज़रे हँसी ख़ुशी
उम्र ऐ दराज का किसे वरदान चाहिए

बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए

सच मानियेगा दोस्तों वो दिन हवा हुए
कहते थे जब घरो में एक दालान चाहिए

फुटपाथ पर रहता है महिलात बना कर
मजदूर को किसी का ना एहसान चाहिए
द्वारा -नमिता राकेश

रविवार, 9 मई 2010

नमस्कार
इस अवसर पर मेरी भी एक रचना प्रस्तुत है
पुनरावृत्ति
जब भी खोलती हूँ
जिंदगी की किताब के
शुरूआती पन्नों को
मेरी आँखें नाम हो जाती हैं
मन के कैनवास पर
कुछ तस्वीरें चलचित्र की भांति
सजीव हो उठती हैं
वो मेरा मुंह मै अंगूठा दबा कर
मां,तुम्हारी गोद में सोना
तुम्हारी ऊँगली पकड़ कर
लडखडाते अबोध पैरों का
पहली बार धरती पर खड़े होना
तुम्हारा पल्लू पकडे पकडे
पूरे घर में
तुम्हारे पीछे पीछे घूमना
बस्ता लेकर स्कूल जाते हुए
गली के आखरी छोर तक
तुम्हे मुड़ मुड़ के निहारना
कुछ और पन्ने पलटने पर
दिखाई पड़ता है
मेरा बड़ा होना
और बड़े होकर
ससुराल चले जाना
एक बेटी का खुद मां बनना
और ........
फिर वही गोद
वही ऊँगली
वही ममतामई नज़रें
वही सम्बल
वही विश्वास
उन्ही सम्वेदनाओं की
पुनरावृत्ति
द्वारा-नमिता राकेश